
साजिद खान उस आदमी का नाम है जो ये कहता है की "मैंने अपनी जिंदगी में इतनी फिल्मे देखी है की मै दर्शकों की नब्ज पहचानता हूँ की उन्हें क्या चाहिए." और वो ले आता है हाउसफुल २. लेकिन ऐसी फिल्मे बनाकर वो अपना बौद्धिक स्तर नहीं बताता बल्कि दर्शको के बौद्धिक स्तर पर प्रहार करता है. हास्य और फिल्म बनाने की कला को पता नहीं उसने क्या समझा है. उसे लगता है की सांप कटेगा तो लोग हसेंगे. मगरमच्छ मुह खोलेगा तो लोग हँसते हँसते लोट पोट हो जायेंगे. तू बाप की नहीं पाप की संतान है और नाजायज का १०-२० बार प्रयोग कर देगा तो हास्य के इस अद्भुत कला पर दर्शक मुग्ध हो जायेंगे. अक्षय कुमार पैराशूट से अधेड महिला के ऊपर गिरते है और दर्शक पता नहीं क्या सोच कर ताली बजा देंगे. और ऊपर से हिरोइनों का अंग प्रदर्शन तो है ही मसाला. कामेडी और सेक्स डालकर कुछ भी बना कर उसे फिल्म का नाम दे देगा. और ऊपर से तुर्रा ये कि "मै क्लास के लिए नहीं मास के लिए फिल्मे बनाता हूँ. मै मनोरंजक प्रधान फिल्मे बनाता हूँ".
बिना कहानी के, उल-जुलूल कांसेप्ट और हरकतों को दिखा कर कौन सा मनोरंजन करना चाहता है वो?? शायद उसने प्रियदर्शन और संतोषी कि कामेडी फिल्मे नहीं देखी है. और विदेशी फिल्मे, जिनकी नक़ल वो करना चाहता है, उसका भी अधकचरा ज्ञान अपनी फिल्मो में ठूंस –ठूस कर 'मनोरजक' फिल्म बनाता है. मुझे लगता है जब वो हृषिकेश मुखर्जी, बासु भट्टाचार्य, राज कुमार हिरानी कि फिल्मे देखता होगा तो कम से कम दस दिनों तक खुद कि शकल नहीं देख पाता होगा.
पता नहीं वो और उसके जैसे निर्देशकों ने मास को क्या समझ कर रखा है? उसे पता है लोगो को क्या चाहिए. लोगो को अश्लीलता चाहिए. फूहड़ द्विअर्थी संवाद चाहिए जो फिल्म से कही से जुड़ा न हो. और लोग उसे उसकी फिल्मे देखकर इतना उत्साहित कर देते है की वो अपनी फिल्मो का पार्ट २ भी बना डालता है. और अक्षय कुमार जैसे बड़े अभिनेता उसमे काम भी करते है. श्रेयस जैसे उम्दा अभिनेता अपने आपको वेस्ट कर देते है.
लेकिन उसे नहीं पता है की दर्शको की गलत नब्ज़ पर हाथ रखा है उसने. ये ही दर्शक है जो पान सिंह तोमर जैसी संजीदा फिल्मो की अहमियत खूब जानते है. उसे अच्छी चीजों कि पहचान है. राज कुमार हिरानी और विशाल भरद्वाज जैसे निर्देशकों ने ये साबित भी कर दिया है भारत के लोगो को कला की पहचान बखूबी है अगर निर्देशकों में उसे दिखाने का हुनर हो. ये और बात है की अपनी भाग दौड से भरी जिंदगी में जनता जब मनोरंजन के लिए पास के सिनेमाहाल जाती है तो उसे विकल्प के रूप में हाउसफुल२ मिलती है. अगर बालीवुड लगातार अच्छी फिल्मे नहीं दे सकता, तो उसे दोष देने का कोई हक नहीं की जनता को सेक्स और फूहड़ संवाद चाहिए. वेडनसडे, मुन्ना भाई, ३ इदीअट्स, ओंकारा, मकबूल, कहानी, ऐसी अनगिनत लिस्ट है जो ये बताने में सक्षम है.