Monday, December 22, 2014

sabka gola ekke hai!!


(SPOILER ALARM: जिन्होंने पीके नहीं देखी कृपया इसे ना पढ़े )
‪#‎pk‬ पर हो हल्ला भी मचने लगा. इसका मतलब लोग देख रहे है, समझ नहीं रहे है, रांग नंबर लग रहा है उ लोग का. सब लुल हो गया.
फिल्म सिर्फ ये बताती है की हमारा धर्म का कांसेप्ट कैसे विकसित होता है.
मै कैसे पता लगाऊंगा की मेरा धर्म क्या है. मै एलियन हु तो मै किसी भी धर्म के परिवार में पैदा नहीं हुआ. इसलिए जन्मजात मै धार्मिक हुआ नहीं.अगर मेरे माँ बाप का पता नहीं, तो फिर धर्म का भी पता नहीं. मेरे शरीर पे कोई ठप्पा भी नहीं है. इसलिए कोई देख के बता नहीं सकता. अब बताओ आप कैसे पता लगाओगे की मेरा धर्म क्या है??
पीके भी इन्ही सवालो में उलझा है. लेकिन उसे धर्म का कुछ पता नहीं इसलिए उसे धार्मिक होने में कोई दिलचस्पी नहीं .
लेकिन वो धार्मिक होता है. जब उसे 'जरुरत' पड़ती है.क्योकि उसके आस पास का इंसानों से भरा समाज उसकी जरुरत पूरा नहीं करता और चेतन अचेतन से, अपना पल्ला झाड़ते हुए, एक अदृश्य शक्ति की तरफ इशारा कर देता है. अदृश्य शक्ति का नाम अपने अपने धर्म और मजहब ने अलग-अलग रखा हुआ है. पीके मान जाता है .
अब फिर सबसे बड़ा सवाल. कौन सा धर्म उसकी जरुरत को पूरा कर सकता है. उसका लाकेट दिला सकता है . हर धर्म का एक परमात्मा है और उस तक पहुचाने वाले अनेको एजेंट. किसपे भरोसा करे? इसलिए वो सबकी बताई हुई सारी बाते मानता है. लेकिन उसकी जरुरत पूरी नहीं होती. वो टूट जाता है. उसे समझ नहीं आता क्या हुआ.
यहीं विश्वास का खेल शुरू होता है. साधारण जिंदगी में हमने उस एजेंट को इतना बड़ा बनाया हुआ होता है, की हम खुद पर शक करना शुरू कर देते है. हो सकता है दूध में पानी हो, या चादर सिंथेटिक हो. या कैडल बुझ गयी हो. ये भी हो सकता है की गफ्फार मार्केट से ख़रीदा हुआ कटार सही ना हो. लेकिन हम उस एजेंट पे सवाल क्यों नहीं उठाते??
पीके उठाता है ! क्युकी उसे खुद पर यकीन है.
और फिर पीके यही समझता है की सब रांग नंबर है. राईट नंबर शिव नहीं, शिवत्व है. जो विवेकानंद ने कहा. जो गांधी ने 'spiritual monism' से समझाया, जो शंकर ने 'अद्वैतवाद' में कहा. गुरुनानक ने 'सबका मालिक एक है' कह के समझाया.
अगर आप पीके की जगह होंगे तो आप खुद सोचिये आप क्या करोगे?
बस यही तो बात है. इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है ?

pk & its predecessors !!


एक जगह पढ़ा था की राजकुमारी हिरानी और अभिजात जोशी किसी सीन को लेकर घर से निकल जाते है और जब तक उस सीन को और उसके संवाद को पूरा ना कर लें वो घर वापस नहीं आते.
जब सिनेमा पैशन होता है तो वो दिखता है !!! सुनाई देता है...और सालो याद रहता है! और फिर कभी मुन्ना भाई, कभी 3 इडियट्स और कभी पीके बन के आता है.
एक बार ममतामयी हंसवाहिनी धिरेवाहिक की जनक केकता कपूर ने अपने किरदार से कहलवाया था की फिल्मे सिर्फ तीन चीजों से चलती है. Entertainment, Entertainment, Entertainment!!
मै हमेशा से मानता हूँ. लेकिन Entertainment होता क्या है ये भी जान /सीख लीजिये. स्किन शो, दोगले संवाद तो मै भी दे सकता हूँ.
Humanist says that we should always transcendent ourselves. Hirani proved it with his each creation!! Its tough to be consistent. In that manner transcending oneself is tougher. its possible only because ….someone following his passion!!
किरदार की बात करते है थोड़ी !
हिरानी के किरदार ऋषिकेश मुखर्जी के कुछ किरदारों की तरह अवास्तविक होते है. जैसे आनंद और बावर्ची का राजेश खन्ना. आनंद का आनंद कहा होते है, बावर्ची का रघु बनना किसके बस की बात है. वैसे ही मुन्ना, रांचो और पीके. लेकिन यही अवास्तविक किरदार हमें जिंदगी की वास्तविकता दिखा जाते है. ये ऐसे किरदार है जैसे लगता है हमारे बीच से होकर निकले और कहा,’सुनो, जिंदगी ऐसे भी जी के देखो’ और चले जाते है. छोटी छोटी चीजे जो हम मिस कर रहे होते है, भूल जाते है,...ये उसकी याद दिला देते है!!हम जिंदगी जिसे हम गुजार रहे होते ह, ये उसे जीना सिखा जाते है!
कुछ बाते हिरानी की बहुत अच्छी लगती है.
१. बूढों लोगो को हमेशा जिंदादिल दिखाना. पीके के शुरू के सीन में वो बूढ़े की जगह कोई और भी हो सकता है. लेकिन फिर क्यूटनेस कहा से आती !!!
२. गंभीर सीन को भारी ना होने देना. याद होगा आपको 3 इडियट्स का वो सीन जिसमे रांचो, राजू के पिता को स्कूटी में ले जाता है. राजू के सुसाइड के बाद का सीन, पीके में बम ब्लास्ट होने के बाद पीके के बैठने का तरीका. मुन्ना भाई की मज्जानी लाइफ!! हिरानी को पता है की आपको कब रुलाना हैं. वो वहीँ रुलाते है !
३. आप हिरानी की फिल्म देखते हुए महसूस करेंगे की आप लगातार मुस्कुरा रहे है ! हम सिर्फ देखते नहीं है, जुड़ते जाते है. फिल्म देख के निकलने पर हम अच्छा महसूस करते है!
४. ये फिल्मे आप अगर ना भी पसंद करो फिर भी जिंदगी का हिस्सा बन जाती है. जब भी ‘सुबह हो गयी मामू’ गाना बजता है, हम खुश हो जाते है. अगर हम किसी ट्रिप पे जाए और अगर किसी ने ‘बहती हवा सा था वो..’ चलाया, सब एक साथ कहते है..इसे चलने देना. और ‘जाने तुझे देंगे नहीं’ चला कर रो लेते है. फिर पीके का ‘चार कदम बस चार कदम ..’ और ‘नंगा पूंगा दोस्त ..‘ भी जुड़ जाएगा!
५. ख़ास बात है की कुछ बाते लॉजिक से परे होती है. लेकिन जाते जाते वो आपको लोजिकल बना जाती है!
6. सबसे जरुरी. उनकी फिल्मे साधारण होती है . और एक फिल्म मेकर ही जानता है की साधारण फिल्मे बनाना कितना असाधारण काम है. जैसे हम जानते है की साधारण जिंदगी जीना कितना असाधारण है!
पीके की बात करे तो कुछ रह जाता है. हिरानी हमेशा नयी बात नए ढंग से कहते है. लेकिन इस बार ढंग तो नया था, बात नयी नहीं रह गयी थी.ओह माय गॉड !! और ढंग में भी 3 इडियट्स बार बार बीच में आ रहा हो जैसे. मै चाहता हु की अगली बार हिरानी कोई बहुत छोटा मुद्दा उठाये. पीके के बारे में इससे ज्यादे नहीं बता सकता. मना किया गया है! हां! प्रोमो देख के मुझे डर था की आमिर ओवर एक्टिंग कर देंगे. लेकिन आमिर वाकई अमीर है (एक्टिंग में)!!
इतना है की पीके देखते समय आपकी स्माइल नहीं जायेगी. मै ये नहीं कहूँगा की आप जाओ पीके देखो. ये वैसा ही होगा जैसे मै आपसे कहू मेरा भगवान् अच्छा है मेरा धर्म अच्छा है आप भी ज्वाइन करो. नहीं! आप जहीन हो!! आप खुद सोचो. की आपको कौन सा Entertainment चाहिए!! आपको कौन सा ‘सिनेमा’ पसंद है !!
(आपको लग रहा होगा की कितना लिख दिया, मुझे लग रहा है कितना रह गया  )