सिल्क (यहाँ सिल्क का मतलब उन लोगो से है जो सिल्क की विचारधारा से इत्तेफाक रखते है) की माने तो Entertainment का मतलब है ‘मसाला’.बदन उघाडू कुछ दृश्य और द्वि-अर्थी संवाद (जहा दूसरा अर्थ वाकई में पहला अर्थ बन गया है.) एक आईटम सांग, कम कपड़ो में औरत. इन्हें ही ‘फार्मूला’ का नाम दिया गया है. क्या ये फार्मूला ही Entertainment है?
उसपे से ये कहा जाता है की ऐसी फिल्मे हम ‘नीचे’ वालो के लिए बनाते है. क्या गरीबो का Entertainment यही है?? क्या उनके पास सोचने समझने की शक्ति नहीं?? जिस तरह से Entertainment को परिभाषाये रची गयी है उसमे तो ‘नीचे’ वाले बिना दिलो-दिमाग के है जो बस वो ही देखने आते है. इस तरह से तो उनका मजाक बनाया जा रहा है और बिचारे पैसे खर्च कर तालिया बजा के चले जाते है!!
मेरे लिए Entertainment का अर्थ इससे अलग है. सिनेमा एक आर्ट है. और आर्ट को जब सहज भाव में प्रस्तुत किया जाए बिना उसकी आत्मा से खिलवाड़ किये तो वो हमें Entertain जरुर करता है. क्या ऋषिकेश मुखेर्जी के आम आदमी में Entertainment नहीं था?? क्या बिना अश्लीलता दिखाए राज कुमार हिरानी ने तीन फिल्मे बनायीं और तीनो ही ब्लाकबस्टर नहीं हुई??क्या उसे ‘नीचे’ वालो ने नहीं देखा??
अब बात करके है सिनेमा के कंटेंट की. सेक्स दिखाना गलत नहीं है. जो सिल्क कहती है वो राजकपूर बहुत पहले ही कर चुके है. उनकी फिल्मो का कंटेंट ऐसा होता था की ‘ऊपर’ वाले और ‘नीचे’ वाले दोनों ही अपने ‘काम की चीज़े’ ढूँढ लेते थे. लेकिन उन्होंने हमेशा फिल्मो में दूसरे कंटेंट हो हावी नहीं होने दिया. बिलकुल सहादत हसन मंटो की कहानियो की तरह. जो जब शुरू होती है तो दिमाग में सेक्स ही रहता है और जब खत्म होती है तो कुछ अगर नहीं होता है तो वो सेक्स. राज कपूर साब की फिल्मे भी देख कर जब लोग निकलते थे तो उनके पास सोचने के लिए समाज की कोई रुढिवादी परम्परा होती थी.
मै ये कहता हू की Entertainment किसी कंटेंट का मोहताज नहीं होता. ऐसा कोई फोर्मुला नहीं है जो ये कहे की सिर्फ वही Entertainment देगा. यहाँ कुछ उदहारण है जिनके कंटेंट बिलकुल ऐसे नहीं है जिन्हें ‘फार्मूला’ समझा जा सकता है. फ़िर भी इन फिल्मो ने इतिहास रचा है. कमाई की बात ही छोड़ दे!
१. आनंद – इस कालजयी फिल्म ने जिंदगी के कबसे कठोर सत्य को कितनी सहजता से दिखाया ये सब जानते है. कोई सोच भी नहीं सकता थे की ऐसे कंटेंट पे भी फिल्म इस तरह से बनायीं जा सकती थी. इस फिल्म ने हमें सिखाया की जीवन के सत्य को समझना भी एक प्रकार का मनोरंजन है.
२. गोल-माल , नरम-गरम, रंग-बिरंगी, चुपके-चुपके और ऐसी अनगिनत फिल्मे जिसमे मुख्य किरदार एक आम आदमी होता था. ऐसी फिल्मो में औरत का जो स्वरुप और रिश्तों के जो खट्टे-मीठे अनुभव दिखाए, क्या उसे ‘निचे’ वालो ने पसंद नहीं किया?
३. मुन्नाभाई और 3 idiot - 3 idiot आज तक की सबसे ज्यादे कमाई करने वाली फिल्म है. ये ऐसी फिल्मे है जिन्होंने दिखा दिया है की मनोरंजन के साथ-साथ सन्देश कैसे दिए जाते है. आप पुरे ३ घंटे मनोरंजन में होते है और घर एक बढ़िया सी बात लेकर जाते है.
४. आरक्षण, गंगाजल, राजनीति, अपहरण, शूल - ये वो फिल्मे है जो अपने संवेदनशील मुद्दों के लिए जानी जाती है. क्या इन फिल्मो में हम मनोरंजन नहीं पाते?? क्या इन्हें देख हमें अच्छा नहीं लगता?? क्या सोचना-समझना, इन मुद्दों पे बात करना, कुछ रास्ते निकालना मनोरंजन नहीं है??
५. रंग दे बसंती- इतिहास रचने वाली ये फिल्म आज की कई क्रांतियो के लिए प्रेरणा-स्रोत रही है. और कहाँ मनोरंजन कम था इसमें??
६. ख़ामोशी (The musical), ब्लैक, पा, तारे जमीन पे, इकबाल, स्पर्श – Differently abled लोगो को केंद्र में रख कर गढ़ी गयी इनकी कहानियाँ इस तरह से दिखाई गयी की लोगो ने एक पल भी नहीं सोचा की इन फिल्मो में item number क्यों नहीं है???
७. . मदर इंडिया, लगान, स्वदेश, नदिया के पार, पिपली लाइव, नया दौर – इन फिल्मो ने उन सारी रुढियो को तोड दिया जो ये कहती थी की गाव की पृष्ठभूमि पे बनायीं गयी फिल्मे नहीं चलती.
८. देव डी, उड़ान, दो दुनी चार, भेजा फ्राई, तेरे बिन लादेन, इश्किया, अतिथि तुम कब आओगे, लाइफ इन मेट्रो, मकड़ी, खोसला का घोसला इत्यादि -छोटे बजट में बनी ये फिल्मो ने एक नया ट्रेन्ड चलाया जिसमे ये बताया गया की पैसे खर्च करना मनोरंजन या सफल होने का कोई मानक नहीं होता है. जरुरी होती है पटकथा, संवाद और दिग्दर्शन!
ऐसे ही कितनी ही फिल्मे है जो Entertainment के किसी set formule से हट कर है और वो सारे मिथक तोड़ते है जैसा की कुछ लोगो ने अपने बचाव में set करके रखे है. जी हां!! मै इसे बचाव ही कहूँगा. जो भी फोर्मुला बनाये जाते है वो उन लोगो के द्वारा जो सिनेमा का मर्म नहीं जानते. उनके लिए कला एक माध्यम है पैसा कमाने का, नाम कमाने का. उन्होंने अपनी कमी छुपाने के लिए ये सब इजाद किया है की फिल्मे ‘फार्मूले’ पे चलती है और मुनाफा कमाने के लिए बनायीं जाती है. जबकि ऐसा बिलकुल भी नहीं है.
एक सिनेमा में कुछ चीज़े बहुत जरुरी होती जिसके बिना सिनेमा, सिनेमा नहीं होता. “Its an art of story telling”. तो इसमें एक अदद कहानी का होना बहुत जरुरी है.और उस कहानी को कहने में कुछ ऐसी चीज़े न हो जिससे वो कहानी खुद अपनी राह भटक जाए. आप चाहे जितना भी पैसा लगा ले, कितनी भी उच्च तकनीक का प्रयोग कर ले, अगर कहानी ने अपनी आत्मा खो दी तो फिल्म भी अपनी आत्मा खो देगी. ये पैसे और तकनीक कहानी को राह दिखाने के लिए होने चाहिए न की भटकाने के लिए. इसपे माथापची करने की दर्शक क्या चाहते है, इस बात पे सोचा जाना चाहिए की कहानी क्या चाहती है??
मै ये नहीं कहता की आप बहुत ही संवेदनशील कहानी पे ही फिल्म बनाये. मै बस इतना कहना चाहता हू की जो भी विषय हो, जो भी कहानी हो, उसके साथ न्याय होना चाहिए.
आज bollywood सबसे बड़ी industry है. सिर्फ इसलिए की यहाँ सबसे ज्यादे फिल्मे बनती है. (और फ्लाप होती है.) आज जब दुनिया हमारी तरफ देख रही है तो हमें सोचना चाहिए की हमारे पास दुनिया को देने के लिए क्या है?? साउथ की रीमेक?? या राज-रानी, large-family-melo-drama?? या बी ग्रेड मसाला फिल्मे??? हमें अच्छी स्क्रिप्ट पे काम करना पड़ेगा. मनोरंजन के बदले स्वरुप को नए सिरे से समझना होगा. सिनेमा के मूल अर्थ समझना होगा. बॉलीवुड को कुछ लोगो के, जिनकी monopoly चल रही है, के चंगुल से निकालना होगा, स्टार के बच्चों के आलावा भी लोग है जिनके अंदर सामर्थ्य है कुछ कर दिखाने का, उनको मौका देना होगा. अच्छी पटकथा के रूप में अपने साहित्य को खगालना होगा. और..........bolllyood को ‘industry’ कहना बंद करना होगा!!!
Remember raju hirani’s word: “Chase exellence, success will follow”
7 comments:
A master piece ........
Indeed thoughtful...
and this time its definately not a view from my side to a person whom i knw rather its for the thinker and philosopher who has actually thought this and sensitively shown the reality here....
i dont knw how far it would reach but i surely wish that it brings change in the mind set of viewers at least... s they say when there is demand there is supply ... we need to cut short the demand...
Hats off to u Maanas... really can't thank u enough!!!!!!!!!!!!!!!
A rather clinical examination of trends and formulas and right one. However, Silk (Dirty Picture) was not limited to it. It wanted to say somthing more...however, it failed short of it - poor direction, who, like Rockstar, was lost in the hype of his own creation.
@Purnima-thank you.:)
@Kafir ji-
1.its not at all about dirty picture.
2."it wanted to"...thats wat i am talking about..if you are not true with your content u cant do justice to it.
3.it was hyped as B-grade film but serious approach worked as unexpected response. i mean a lower frame of reference helped it. exactly contrary to Rockstar wherein promos have creted much high frame of reference.
बहुत ही उम्दा आंकलन है ..
Dr Mukesh
जी धन्यवाद!!
:)
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